Sunday 26 March 2017

|| दहेज़ : खतरनाक हैवान ||

|| दहेज़ : खतरनाक हैवान ||

सच कहता हूँ मेरी मानो, खतरनाक हैवान है ये l
दहेज़ मांगने वाले, सबसे सर्मनाक इंसान है ये l
धिक्कार है उन लोगो को, जो बेटो कि नीलामी करते है l 
पैसो के लिए "सीता" को छोड़कर, "सूर्पनखा" कि हामी भरते है l
बेटो को अगर पढ़ाया है तो लड़की वालो पर एहसान किया ?
लड़के वालो के स्वार्थ पर, बापू ने घर बर्बाद किया l
मांगने वालो को इंकार करो सब, बहुत बड़े सैतान है ये l
दहेज़ मांगने वाले, सबसे सर्मनाक इंसान है ये l
नई पीढ़ी के युवा साथियो ! इस कैंसर का उपचार करे l
मांगने को उकसाए भी तो, साथी इंकार करे l
अपने लिए है अपना कर्तव्य, नहीं अन्य पर एहसान है ये l
दहेज़ मांगने वाले बड़े सर्मनाक इंसान है ये l






"दोस्तों... , दहेज़ हमारे समाज के माथे पर कलंक है, इसे धो डालना हमारा परम धर्म और नैतिक कर्तव्य है l आइये हम सब मिल के ये संकल्प करे - दहेज़ रूपी दीपक कि लौ से किसी भी नव वधू का आँचल जलने ना पाए l "

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Saturday 25 March 2017

।। माँ ।।

माँ :-

माँ के प्यार का न है कोई जवाब l 
न है उसकी कोई कीमत और न है हिसाब l
माँ की ही वो गोद है जहा मानवता पले l 
अगर जन्नत है कही तो उसके आँचल के तले l



जिस तरह माता अपने बेटे के लिए हरेक चीज़ कुर्बान कर देती है, उसी प्रकार बेटे को चाहिए की उसके लिए सब कुछ अर्पण कर दे ! लेकिन अफ़सोस कि सांसारिक बादशाहों और अमीरों में इसकी बहुत काम मिसालें मिलती है !
शाहजहाँ बादशाह कि तरह और लोगो ने अपने लिए, अपनी औलाद या चहेती पत्नी के लिए तो बहुत सी यादगारें कायम की लेकिन खास माता के लिए यादगार कायम करने वाले बहुत कम है !
वृहद धर्म पुराण में महर्षि वेद व्यास ने माता कि महिमा इस प्रकार बयान कि है :-
१. पुत्र के लिय माता का स्थान पिता से भी बढ़कर होता है, क्युकी वह उसे गर्भ में धारण कर चुकी है और माता के द्वारा ही उसका पालन-पोषण हुआ है ! तीनो लोको में माता के सामान दूसरा कोई गुरु नहीं है !
२. गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, विष्णु के समान कोई पूजनीय नहीं और माता के समान कोई गुरु नहीं !
३. एकादशी के समान कोई व्रत नहीं, उपवास के समान कोई तपस्या नहीं और माता के समान कोई गुरु नहीं !
४. भार्या (धर्मपत्नी) के समान कोई मित्र नहीं ! पुत्र के समान कोई प्यारा नहीं, बहन के समान कोई माननीय (सम्माननीय) नहीं और माँ के समान कोई गुरु नहीं !
५. दामाद के समान कोई दान लेने का योग्य पात्र नहीं ! कन्यादान के समान कोई दान नहीं ! भाई के समान कोई बंधू नहीं और माता के समान कोई गुरु नहीं !
६. देश वही श्रेष्ठ है, जो गंगा के किनारे हो ! पत्तो में तुलसी का पत्ता सबसे श्रेष्ठ है ! वर्णो में ब्राहाण वर्ण सबसे श्रेष्ठ है और गुरुजनो में माता ही सबसे श्रेष्ठ है !
७. पुरुष पत्नी का आसरा लेकर आप ही पुत्र रूप में जन्म लेता है ! दृष्टिकोण से अपने पूर्वज पिता का भी आसरा माता होती है, इसलिए वही सबसे श्रेष्ठ है !
८. धर्मशील पुत्र माता और पिता दोनों को एक साथ देखने पर पहले माता को प्रणाम करके उसके बाद पिता रूपी गुरु को नमस्कार करता है !
माता के इक्कीस नाम ये है :-
१. धरती २. जननी ३. दया हृदया ४. शिवा ५. त्रिभुवन श्रेष्ठा ६. देवी ७. निर्दोषा ८. सर्वदुखहरा ९. परम अराधनिया १०. दया ११. छमा १२. धृति १३. स्वाहा १४. स्वधा १५. गौरी १६. पद्मा १७. पूज्या १८. जया १९. शान्ति २०. मातृ २१. दुखहरनी !
जो पुरुष इन नमो को सुनता है और सुनाता है, वह सब दुःखो से मुक्त हो जाता है ! बड़े से बड़े दुःखो से पीड़ित होने पर भी भगवती माता का दर्शन करके जो आनंद मनुष्य को मिलता है, उसे जबान से बयान करना संभव नहीं !
माँ का एहसान बच्चो पर है, उसको ध्यान करते हुए श्री बोधराज जफ़र ने फ़रमाया है :-
"जिस व्यक्ति के सिर पर माँ-बाप का साया है, उसको भगवान कि भक्ति कि भी कोई जरुरत नहीं, क्युकी आनंद - स्वरुप माँ-बाप बोलते चालते और जीते जागते भगवान के रूप में इनके घर में मौजूद है !" वैसे तो इंसान माँ-बाप के एहसानो का बदला सात जन्म में भी नहीं उतार सकता, क्युकी माँ-बाप ने ही बच्चो को संसार कि हर आँधी, तूफान और गर्द-गुबार से बचाकर उसका पालन-पोषण किया, बड़ा किया, शिक्षा दिलाई और बच्चे के जवानी में कदम रखते ही उसका विवाह किया !
अपने खून पसीने कि कमाई को निःसंकोच पानी के तरह बहा दिया और बच्चे कि प्रसन्ता को दृष्टिगत रखते हुए बच्चे के भविष्य का हर हालत और हर कीमत पर ध्यान रखा ! बुजुर्गो ने सच ही कहा है, "सोने की सील गले, आदम का बच्चा पले !"
"परन्तु माँ का चरित्र तो और भी सुन्दर और महत्व रखता है, जिसने पुरे नौ मास बच्चे को अपने पेट में रख कर और सख्त से सख्त तकलीफ सहन करके और कई सैकड़ो परहेज करके जिंदगी और मृत्यु के मध्य लटक कर उसे जनम दिया और सख्त सर्दी कि रातो में बच्चे के पेशाब से तर बिस्तर को बदल-बदल कर स्वयं पेशाब से तर बिस्तर पर सोना और बच्चे को खुश्क बिस्तर पर सुलाना और ढाई - तीन वर्ष तक मल-मूत्र से उसको साफ़ करना क्या महत्व नहीं रखता है !
"वह चेहरा क्या था, सूरज था ? खुदा था या पैगम्बर था ?
वह चेहरा जिससे बढ़कर खूबसूरत कोई चेहरा हो ही नहीं सकता, कि वह एक माँ का चेहरा था ! जो अपने दिल के ख्वाबो, प्यार कि किरणों से रोशन था !"
"माँ के प्यार का न है कोई जवाब !
न है उसकी कोई कीमत और न है हिसाब !
माँ की ही वो गोद है जहाँ मानवता पले !
अगर जन्नत है कहीं तो उसके आँचल के तले ! "


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